जोगी बिठाई

जोगी बिठाई........!
बस्तर दशहरा में काछिनगादी के बाद सबसे महत्वपूर्ण रस्म है जोगी बिठाई। आश्विन शुक्ल प्रथमा से दशहरा में नवरात्र कार्यक्रम प्रारंभ होता है। नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना की जाती है। जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर में हवन पूजा पाठ पुरे नौ दिनों तक चलते रहते है।
नवरात्र के पहले दिन ही सिरासार भवन में जोगी बिठाई का कार्यक्रम होता हैं। इस कार्यक्रम मे आमाबाल गांव का व्यक्ति विधि विधान से जोगी के रूप में बिठाया जाता है। सिरासार भवन में एक आदमी अंदर समाने लायक गडढा खोदा जाता है ।

मावली देवी के पूजा अर्चना के बाद जोगी को उसमें बैठाया जाता है। यह परंपरा छः सौ साल पुरानी है। पीढ़ियो से आमाबाल एवं पराली गांव के ग्रामीण जोगी बनते है। जोगी नौ दिनों तक वहीं गढडे में रहता है जिसके लिये दुग्ध एवं फलों की व्यवस्था रहती है। चारों तरफ कपड़ा लगाया जाता है ताकि उसे बुरी नजर से बचाया जा सके।
जोगी बिठाई के बारे में लाला जगदलपुरी जी अपनी पुस्तक बस्तर संस्कृति इतिहास में लिखते है कि कभी दशहरे के अवसर पर एक ग्रामीण दशहरा निर्विघ्न संपन्न हो , इसलिये वह अपने ढंग से योग साधना में बैठ जाया करता था।
वह नौ दिन तक योगासन में बैठा रहता है। इसी से जोगी बिठाई का प्रथा चल पड़ी। जोगी बिठाते समय मांगूर मछली काटने का रिवाज है। पहले बकरा भी काटा जाता था। जोगी बिठाई कार्यक्रम की मान्यता है कि जोगी के तप से देवी प्रसन्न होती है और दशहरा निर्विघ्न संपन्न होता है। 
ओम सोनी !

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