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Showing posts from November, 2017

बालोद का कुकुर देव मंदिर। Dog's Temple

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अनोखा मंदिर - कुकुर देव मंदिर बालोद में कुत्ते का ऐतिहासिक मंदिर।  छत्तीसगढ़ के बालोद जिले मे बालोद से राजनादंगांव रोड में मालीधोरी एवं खपरी नाम के दो गांव है।  इस  खपरी गांव में कुकुरदेव नाम का एक प्राचीन मंदिर स्थित है। यह मंदिर मूलतः एक शिव मंदिर है।  मंदिर के बाहर कुत्ते की  दो प्रतिमाये लगी हुयी है।  मंदिर के नाम के अनुरूप् ही यह मंदिर कुत्ते का मंदिर के नाम से जाना जाता है ।  इस मंदिर में एक वफादार कुत्ते की समाधि है। मान्यता है कि मंदिर की  फेरी लगाने एवं यहाँ दर्शन करने से कुकुर खांसी व कुत्ते के काटने का कोई भय नहीं रहता है। My Hand in Dog's Mouth इस मंदिर का निर्माण 14 वीं 15 वीं शताब्दी में माना गया मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दोनों ओर कुत्तों की प्रतिमा लगाई गई है। मंदिर में शिखर पर चारों दिशाओं में नागों के चित्र बने हुए हैं। मंदिर के पास  उसी समय के शिलालेख भी रखे हैं लेकिन स्पष्ट नहीं हैं। इन पर बंजारों की बस्ती, चांद सूरज और तारों की आकृति बनी हुई है। राम लक्ष्मण और शत्रुघ्न की प्रतिमा भी ...

बारसूर का बत्तीसा मंदिर Battisa Mandir Barsur

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बारसूर का बत्तीसा मंदिर वीर सोमेश्वरा एवं गंगाधरेश्वरा नामक दो शिवालयों का संयुक्त मंडप युक्त बस्तर में एक मात्र मंदिर। ओम सोनी        बारसूर का बत्तीसा मंदिर बस्तर के सभी मंदिरों में अपना विशिश्ट स्थान रखता है। बारसूर नागकालीन प्राचीन मंदिरों के लिये पुरे छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध है। यहां के मंदिरों की स्थापत्य कला बस्तर के अन्य मंदिरों से श्रेश्ठ है। बारसूर का यह युगल षिवालय बस्तर के सभी षिवालयों मंे अपनी अलग पहचान रखता है। बत्तीसा मंदिर में दो गर्भगृह , अंतराल एवं संयुक्त मंडप है।  महाराजाधिराज स्वयं उपस्थित ! यह मंदिर पुरे बस्तर का एकमात्र मंदिर है जिसमें दो गर्भगृह एवं संयुक्त मंडप है।  मंडप बत्तीस पाशाण स्तंभों पर आधारित है जिसके कारण इसे बत्तीसा मंदिर कहा जाता है। मंडप में प्रवेश करने के लिये तीनों दिषाओ में द्वार है। यह मंदिर पूर्वाभिमुख है जो कि तीन फूट उंची जगती पर निर्मित है।  मंदिर में दो आयताकार गर्भगृह है। दोनो गर्भगृह में जलहरी युक्त शिवलिंग है। शिवलिंग त्रिरथ शैली में है। शिवलिंग की जलहरी को पकड़ पुरी तरह से घुमाया जा सकता है। वीर सोमेश्वरा...

समलूर का शिव मंदिर Shiva Temple Samloor

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झुकने लगा 11 वीं सदी का समलूर का शिव मंदिर Shiva Temple Samloor छत्तीसगढ के दंतेवाडा जिले के समलूर स्थित 11 वीं शताब्दी के प्राचीन करली महादेव मंदिर का दक्षिण-पश्चिमी कोना जमीन में धंसने की वजह से एक तरफ झुकने लगा है। झुकने की यह रफ्तार जारी रही तो मंदिर के जल्द ही जमींदोज होने की आशंका बनी हुई है, लेकिन मंदिर के संरक्षण का जिम्मा लेने वाला केंद्रीय पुरातत्व विभाग आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया ने अब तक कोई एहतियाती उपाय शुरू नहीं किए हैं। दो साल पहले विभाग की टीम ने इस मंदिर के केमिकल प्रीजर्वेशन के नाम पर पत्थरों पर चूना और अन्य रंगरोगन की परत हटाने का काम किया था। इसी दौरान बलुई पत्थरों से निर्मित मंदिर की दीवारों में मसाला भरकर दरारों को ढंक दिया, जिससे समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकाला जा सका है। इस प्रक्रिया के दो साल बाद मंदिर का दक्षिण-पश्चिमी कोना दबने का सिलसिला फिर शुरू हो गया है। गर्भगृह में स्थित शिवलिंग और कलात्मक जलहरी भी एक तरफ हल्की झुकी हुई है। मंदिर के मंडप में मूर्तियों के आले भी हल्के झुके हुए हैं। स्थानीय युवा और पुरातत्व के जानकार ओम सोनी ने भी मंदिर की दशा को च...

बस्तर का बास्ता..... Bastar Ka Basta

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बस्तर का बास्ता..... Bastar  Ka Basta - ओम सोनी बस्तर में यहां के आदिवासी समाज पहले खान पान पर पुरी तरह से जंगलो पर ही निर्भर थे। अब भी बहुत से खादय पदार्थ जंगलो से ही प्राप्त होते है। जब बात सब्जी की हो तो यहां के आदिवासी जंगलो से मिलनी वाली सब्जियों को पहले प्राथमिकता देते है। यहां जंगलो से मिलने वाला एक ऐसे ही पौधा है जिसे खाया जाता है। वह पौधा है बांस। बस्तर में बांस की कोपलों को बडे चाव से सब्जी बनाकर खाया जाता है। इन कोपलों को बास्ता या करील कहा जाता है।  जून से अगस्त तक बांस के झुरमुटो में नयी कोपलों (बास्ता) को निकाला जाता है। जिसे बाजार में बेचा जाता है। बास्ता में सायनोजेनिक ग्लुकोसाईठ, टैक्सीफाईलीन एवं बेंजोईक अम्ल पाया जाता है। जो कफ निःसारक, उत्तेजक, तृशाषामक होता है। इसलिये लोग इसका उपयोग खाने में करते है। बास्ता का उपयोग खाने अचार बनाने के लिये होता है।  औशधी गुणों के कारण बडे पैमाने में इसकी तस्करी होती है। बास्ता को तोडकर इसकी तस्करी करना प्रतिबंधित है।  तीन सौ से चार सौ रू तक प्रति टोकरी में इसे बेचा जाता है। एक टोकरी में लगभग 20 किलो बास्ता हो...

बस्तर के 'अकुम'

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बस्तर के  'अकुम'  की ध्वनि अब सुनाई नहीं पड़ती!! Bastar ka Akum ओम सोनी बस्तर की आदिम संस्कृति के विभिन्न पहलू आज भी दुनिया के लिये शोध का विषय है. बस्तर में  पहले के जन जीवन के कुछ परम्परागत उपकरण आज अपना महत्व खोते जा रहे है.बस्तर की आदिम संस्कृति में आज आधुनिकता एवं भौतिकता के कारण धीरे धीरे परम्परागत आवश्यक उपकरण अब लुप्त होते जा रहे है. हजारो वर्षो से ये  उपयोगी उपकरण , अब तो विरले ही दिखाई पड़ते है. बस्तर का एक ऐसा ही परम्परागत उपकरण है 'अकुम' जो अब देखने को नहीं मिलता है. यह एक महत्वपूर्ण उपकरण है ज़िसकी ध्वनि दुर खडे साथी को सतर्क कर देती है. अकुम जंगली भैंस के सींग से बना आदिवासियो का एक सूचना या चेतावनी पहूँचाने का महत्वपूर्ण उपकरण है. सींग को गर्म करके चिकना बनाया जाता है. इसके नोक वाले सिरे पर एक छोटा सा छेद किया जाता है. उसमे बांस का टुकडा डालते है. फिर इसे बजाया जाता है. इसको बजाने में बहुत ताकत लगानी पड़ती है. इसकी ध्वनि शंख के समान होती है. इसको बजाने के लिये फेफडो का मजबुत होना ज़रूरी है. आदिवासी हर्ष उल्लास के समय इसे बजाते है. इसका ज्यादा उपयोग शिक...

बस्तर का तक्षक नाग Flying Snake of Bastar

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 बस्तर का तक्षक नाग Flying Snake of Bastar ओम सोनी बस्तर घने जंगलो के कारण वन्य जीवों से समृद्ध रहा है। अत्यधिक षिकार एवं जंगलो की कटाई से बहुत से वन्य जीव बस्तर से लुप्त हो चुके है। आज भी बस्तर के कुछ क्षेत्रों की वन संपदा आमजनों से अछुती है। दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा के बैलाडीला के जंगल आज भी वन्य जीवों के रहवास के आदर्ष स्थल है। जब बात रेंगने वाले जीवों  अर्थात सर्प प्रजाति की होती है तो भी उस मामले में भी बस्तर के जंगल अव्वल है। दक्षिण बस्तर में बैलाडिला की पहाड़ियों के जंगल में एवं बस्तर के अन्य जंगलो  में  आज भी पौराणिक सांप तक्षक कभी कभी उडते हुये दिखायी पड़ता है। स्थानीय स्तर पर इसे उड़ाकू सांप भी कहा जाता है।  महाभारत के बाद राजा परीक्षित इस तक्षक नाग से जुड़ा एक प्रसंग है जिसके अनुसार श्रंृगी ऋशि ने महाराज परीक्षित को श्राप दिया था कि तुम्हारी मृत्यु तक्षक नाग के डसने से होगी। तक्षक नाग के डसने से राजा परीक्षित की मृत्यु हो गयी तब परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने तक्षक नाग से बदला लेने के लिये सर्प यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में सभी संप आकर गिरने लगे तब तक्षक नाग ...

बस्तर का बोड़ा Bastar Ka Boda

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बस्तर का बोड़ा बस्‍तर   के जंगलों में मिलने वाला बोड़ा की सब्जी खाने के लिए मानसून आने का इंतजार करते है यहां के लोग - Om Soni आज पुरा भारत जहां मानसून के फुहारों में सराबोर हैं वहीं बस्‍तर में लोगों के चेहरों पर मानसून आने के बाद एक अलग खुशी नजर आती  है और वह खुशी है एक ऐसी सब्‍जी, जिसे खाने के लिये सालभर लोग मानसून आने का इंतजार करते है. मानसुन के शुरूआती दिनों मे, बस्‍तर के जंगलो में ,जमीन के अंदर से गांठ नुमा ,छोटे छोटे आलु ,की तरह एक विशेष प्रकार का जंगली खादय  मिलता है जिसे यहां बोडा के नाम से जाना जाता है. बोडा की सब्‍जी बेहद ही लोकप्रिय एवं स्‍वादिष्‍ट होती है.बाजार में बोडा आते ही लोग खरीदने के  लिये टूट पड़ते  है.बोडा में खनिज लवण एवं काबोहाईड्रेट भरपुर मात्रा  में होता है. बस्‍तर को सालवनों का द्वीप कहा जाता है. साल के पेडो के नीचे जमीन में बोडा का अपने आप प्रक़ति द्वारा उत्‍पादन होता है. बारिश की कुछ बुंदो के बाद जब हल्‍की सी धुप पडती है तब इन साल के पेडो के नीचे जमीन में हल्‍की दरारे पड जाती है इन दरारों को खोदकर यहां के स्‍थानीय लोग जमीन से...

सातधार जलप्रपात Satdhar Watefall Barsur

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बस्तर का भेड़ाघाट - सातधार जलप्रपात Satdhar Watefall Barsur - ओम सोनी इंद्रावती बस्तर की प्राणदायिनी नदी है। यह नदी उड़िसा के कालाहांडी से निकलकर भोपालपटनम के आगे गोदावरी में विलीन हो जाती है। इस नदी में दो जलप्रपात निर्मित है पहला जगदलपुर के पास विश्वप्रसिद्ध चित्रकोट एवं दुसरा ऐतिहासिक नगरी बारसूर के पास सातधार जलप्रपात। सातधार जलप्रपात इतिहास और प्रकृति की सुंदरता का अदभुत मेल है। इसी नदी के आगे नागो की राजधानी बारसूर है। जहां आज भी कई ऐतिहासिक महत्व के मंदिर है। इस जलप्रपात के पास ही नागों के किले के निशान बिखरे पड़े है। बारसूर के लगभग 04 किलोमीटर की दुरी सातधार गांव है। इस गांव के पास ही इंद्रावती नदी में अभुझमाड़ को जोड़ने के लिये पुल बना हुआ है। इस पुल से एक कच्चा मार्ग अबुझमाड़ के तुलार की तरफ जाता है। इस मार्ग में पुल से लगभग 01 किलोमीटर की दुरी पर इंद्रावती नदी में सातधार जलप्रपात बने हुये है। इस स्थान में इंद्रावती नदी सात अलग अलग धाराओ में बंटकर  बेहद ही मनमोहक छोटे छोटे झरनो का निर्माण करती है। इस कारण यह गांव एवं जलप्रपात दोनो सातधार के नाम से जाना जाता है। इंद्रावती क...

मलाजकुडुम जलप्रपात, कांकेर MalajKudum Waterfall Kanker

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मलाजकुडुम जलप्रपात, कांकेर - ओम सोनी            बस्तर का पठारी क्षेत्र बहुत से प्राकृतिक जलप्रपातों का निर्माण करता है। आज बस्तर में कई जलप्रपात है जो बेहद ही खुबसुरत एवं मनमोहक है। कई जलप्रपात ऐसे है जहां जाना बेहद ही दुर्गम है और कुछ ऐसे भी कई जलप्रपात है जहां जाना बेहद ही आसान है परन्तु समुचित प्रचार प्रसार के अभाव में वे गुमनामी के अंधेरे में कहीं खोये हुये है। ऐसा ही एक बेहद ही सुंदर एवं उंचा जलप्रपात है कांकेर जिले का मलाजकुंडुम जलप्रपात । यहां जाना बेहद ही आसान है परन्तु जानकारी के अभाव में पर्यटक इसके सौंदर्य को निहार नहीं पाते है।           कांकेर शहर के गढ़ पिछवाड़ी की तरफ से मुख्य सड़क हटकर से बांये तरफ , एक पक्की सड़क जाती है। इस सड़क में 20 किलोमीटर आगे मलाजकुडुम नामक बेहद ही छोटा सा गांव है। इस गांव के पास ही पहाड़ी पर कई भागों में विभक्त बेहद उंचा जलप्रपात है। वास्तव में यह जलप्रपात, दुध नदी का उदगम है जो कि कांकेर शहर के मध्य से बहती है।           जलप्रपात के उपर जाने के लिये पास ही ...