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Showing posts from January, 2018

विलुप्ति के कगार पर - बस्तर का वन भैंसा

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विलुप्ति के कगार पर - बस्तर का वन भैंसा बस्तर अत्यधिक वनसंपदा के कारण वन्य जीवों के मामले में भी संपन्न रहा है। परन्तु पिछले सौ सालों में अंधाधुंध शिकार के कारण बस्तर में अब बहुत से वन्य जीव लुप्त हो चुके है और अधिकांशतः विलुप्ति के कगार पर है। बस्तर में हाथी, सिंह, बाघ,, जंगली भैंसा, गौर, नीलगाय जैसे बड़े स्तनपायी वन्य जीव बहुतायत में थे। अंग्रेजों के शासन में ही जंगली भैंसों, बाघों का अंधाधुंध शिकार किया गया जिसके कारण ये बस्तर से लगभग विलुप्त हो चुके है। अंग्रेजो द्वारा किये गये वन भैंसो के शिकार, से जुड़े रोचक किस्से आज भी इतिहास में दर्ज है।  छत्‍तीसगढ   राज्‍य   का   राजकीय   पशु   वन   भैंसा (Wild Buffalo)  अर्थात  Bubalus Bubalis  है।    वन भैंसा छत्‍तीसगढ के दुर्लभ एवंसंकटग्रस्‍त प्रजातियों में से एक है। एक समय में ये प्रजाति अमरकंटक से लेकर बस्‍तर तक बहुत अधिक संख्‍या में पाया जाता था किन्तु अब मात्र उदंती अभ्यारण्य और बस्तर में इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान और भैरमगढ अभ्यारण्य में ही पाया जाता है।  उदंती अभ्यारण्य मे...

भैरमगढ़, एक भुला दिया गया एेतिहासिक स्थल

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भैरमगढ़, एक भुला दिया गया एेतिहासिक स्थल!! बस्तर में , भैरव की सबसे बड़ी प्रतिमाये !!                                                                                                                                                                                                                                                  ओम सोनी बस्तर की खोज एक कभी ना खत्म होने वाली खोज हैं. बस्तर एक अथाह गह...

बस्तर की पेय पहचान - सल्फी

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बस्तर की पेय पहचान - सल्फी !! ओम सोनी आप में से शायद ही किसी ने सुना हो कि किसी पेड़ से आनन्ददायक पेय मिलता हो , तो आपका जवाब होगा ना , लेकिन बस्‍तर मे ऐसे पेड़ पाये जाते है जिससे ऐसा रस मिलता है और उस रस को बेचने से आदिवासियों का अच्‍छी खासी आ्मदनी होती हैा बस्‍तर में ताड़ की तरह उंचे पेडो को सल्‍फी कहा जाता है.यह पेड़ ताड़ की एक प्रजाति कारयोटा युरेंस हैा वैसे पुरे बस्तर में सल्‍फी के पेड़ बहुतायत में पाये जाते है किन्‍तु कुछ सालों में आक्‍सीफोरम फिजिरियस फंगस के कारण ये पेड़ सुखने लगे जिससे इनकी संख्‍या मे अच्‍छी खासी कमी आयी हैा किन्‍तु अब फिर से आदिवासी सल्‍फी के पेड़ लगाने लगे है. 10 साल में सल्‍फी के पेड़ रस देने लगते है. एक पेड़ से सालाना 50 हजार तक की कमाई हो जाती है. जिस किसी के पास 4 से 5 पेड़ उसे सालाना ढाई तीन लाख की आमदनी हो जाती है. इनसे लगभग साल भर रस प्राप्‍त होता हैा सल्‍फी के पेड़ में गुच्‍छेदार हरे हरे फूल लगता है जिसे पोंगा कहा जाता है. उस पोंगा को काट देते है जिससे वहां से निकलने वाले रस को हंडी में इकठठा किया जाता है. यह पेड़ लगभग 40 फिट उंचा होता है जिस पर हंडी लटकाना और उसम...

बस्तर की चापडा चटनी

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बस्तर की चापडा चटनी  आदिवासियो की प्रिय, लाल चिंटियो की चटनी। ओम सोनी बस्तर मे सरगी वृक्ष बहुतायत मे पाये जाते है। सरगी वृक्ष बस्तर के आदिवासियो की बहुत से जरूरतो को पुरा करते है जैसे इनके पत्तो से दोना, पत्तल बनता है , सरगी के लकडी से दांतो की सफाई के लिये दातुन बनता है। सरगी पेड के नीचे बरसात के शुरुवाती दिनो मे आने वाले प्रसिद्ध बोडा का उत्पादन होता है जो की बस्तर की बहुत ही प्रिय सब्जी है और सरगी के पेड के पत्तियो मे एक लाल चींटी का निवास भी है. यह लाल  चींटी की चटनी बस्तर के आदिवासी का प्रिय भोज्य पदार्थ है।  यह लाल चींटी चापड़ा चींटी के नाम से जानी जाती है. चापडा का अर्थ है - पत्तियो से बनी हूई घोसला. लाल चिंटिया सरगी वृक्ष की पत्तियोे को अपनी लार से चिपका कर घोसला बना कर रहती है। प्रायः आम अमरूद साल और अन्य ऐसे पेड़ जिनमें मिठास होती है उन पेड़ों पर यह चींटियां अपना घरौंदा बनाती हैं। आदिवासी एक पात्र में चींटियों को एकत्र करते हैं। इसके बाद इनकों पीसा जाता है। नमकए मिर्च मिलाकर रोटी के साथ या ऐसे ही खा लिया जाता है। चींटी में फॉर्मिक एसिड होने के कारण इससे बनी चटनी ...

बहादुर कलारीन की माची

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बहादुर कलारीन की माची , चिरचारी, बालोद।    ओम सोनी बालोद जिले में बालोद से गुरूर रोड में अन्दर की ओर चिरचारी नाम का गांव है. यह पत्थरो से बना एक मंडप था जो कि बहुत ही जीर्ण शीर्ण था।  वर्तमान में यह पुरा बिखर गया है। यहां प्रचलित कथा के अनुसार कभी कोई हैहयवंशी राजा यहां शिकार खेलने के लिये आया था। वह गांव की बहादुर कलारीन पर मोहित हो गया था. बाद में दोनो ने गंधर्व विवाह कर लिया। बहादुर कलारीन गर्भवती हो गई थी।  राजा ने उसे इसी अवस्था में छोड कर वापस अपने राज्य में चला गया। बहादुर कलारीन ने एक बालक को जन्म दिया। उसने उसका नाम कचान्छा रखा। पत्थरो से बना एक मंडप वह जब बडा हो गया तो उसने अपनी माँ से अपने पिता के बारे में पुछा तब बहादुर कलारीन ने अपने साथ घटित घटनाओ के बारे अपने बेटे को बताया।  तब कचान्छा को सभी राजाओ से नफरत हो गई। उसने अपना सैन्य संगठन खडा किया और आसपास के सारे राजाओ पर हमला कर दंडित किया।  एक बार उसने एक राजा पर हमला कर उसकी बेटियो को बन्दी बना लिया। बहादुर कलारीन ने अपने बेटे को उन निर्दोष राजकुमारियो को छोडने के लिये कहा।  परंतु बेटा न...

चित्रधारा जलप्रपात जगदलपुर

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चित्रधारा जलप्रपात जगदलपुर  अस्सी के दशक के फिल्मो की य़ादे ताजा करता चित्रधारा ! ओम सोनी बस्तर की धरती  बेहद ही मनमोहक एवं सुंदर दृश्यों से भरी पड़ी है। दृश्य इतने मनमोहक होते है कि कई दिनों तक आंखो के सामने घुमते रहते है। वैसा ही एक बेहद ही सुंदर जलप्रपात है चित्रधारा जलप्रपात। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है मनमोहक झरनों का बेहतरीन दृश्य। बहती हुयी धाराओं का बेहतरीन चित्र ही चित्रधारा जलप्रपात है। पोज देते हुये लेखक जगदलपुर से 20 किलोमीटर दुर चित्रकोट रोड की तरफ पोटानार के पास एक छोटा सा परंतु बहुत ही खूबसूरत झरना है. चित्रधारा  खेतो से बहता हुआ पानी एक नाले का रूप ले लेता है। यह बरसाती नाला एक गहरी और लम्बी खाई में कई हिस्सो में 50-60 फीट के बहुत ही सुंदर झरने बनाता है  और  आगे बहते हुये विशाल इन्द्रावती नदी में विलीन हो जाता है। खेतो से बहता हुआ पानी  चित्रधारा जलप्रपात जगदलपुर से सबसे नजदीक एवं आदर्श पर्यटन स्थल है. चित्रधारा के आसपास का नजारा बेहद ही मनमोहक है. चारो तरफ धान के हरे भरे खेत , रंग बिरंगे फूल, खेतो में बहता निर्मल पानी , नीले अम्बर में विचरते ...

वन दूर्गा देवी, दंतेवाड़ा

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वन दूर्गा देवी, भैरम बाबा मन्दिर दंतेवाड़ा  पत्तियाँ चढाई जाती है यहां देवी को। ओम सोनी पुरे भारत में देवियों को विभिन्न स्वरूपो में पूजा जाता है।  अनेको नाम से आव्हान किया जाता है। देवी शक्ति से जुड़ी अनेको मान्यताये भी प्रचलित है।  ऐसी ही, देवी से जुड़ी एक अनोखी मान्यता दंतेवाड़ा में  भी प्रचलित है। मान्यता के अनुसार यहां देवी को पेड़ो की पत्तियाँ अर्पित की जाती है। वन दूर्गा देवी दंतेवाड़ा में शंखिनी डँकिनी नदियो के संगम में पर बस्तर की आराध्य देवी माँ दंतेश्वरी का जगत प्रसिद्ध मन्दिर है वही दुसरी तरफ भैरव बाबा का मन्दिर है। भैरव बाबा मन्दिर परिसर में ही किनारे एक छोटा सा मन्दिर निर्मित है जिसमें देवी भैरवी की प्रतिमा स्थापित है जिसे स्थानीय लोग वनदूर्गा के नाम से पूजा करते है। सामान्यतया जहां देवी देवताओ को विभिन्न फल फूल एवं मिठाइयाँ चढाई जाती है। परंतु विशिष्ट मान्यता अनुसार यहां देवी को पेड़ पौधो की पत्तियाँ चढा कर भक्त देवी से आशिर्वाद प्राप्त करते है। भक्तों से पत्तियाँ स्वीकार करने के कारण देवी , डालखाई देवी के नाम से भी जानी जाती है।  यह प्रतिमा ग्यारहवी सदी...

चितावरी देवी मन्दिर, धोबनी

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चितावरी देवी मन्दिर, धोबनी ईंटो से बना ताराकृति का प्रमुख मंदिर ओम सोनी रायपुर बिलासपुर मार्ग में दामाखेडा ग्राम से बाये तरफ अन्दर की ओर, दो किलो मीटर की दुरी पर धोबनी नामक ग्राम स्थित है. इस ग्राम के मध्य में तालाब के किनारे एक विशाल प्राचीन मंदिर अवस्थित है. यह मंदिर पश्चिमाभिमुख है जो कि मूलतः भगवान शिव को समर्पित है।  मंदिर लगभग दो फीट ऊँचे चबुतरे पर निर्मित है। मन्दिर का नीचे का हिस्सा पत्थरों से बना है।      शिखर वाला भाग ईंटो से निर्मित है. शिखर में आमलक एवं कलश नहीं है. मन्दिर का गर्भगृह वर्गाकार है. शिखर का सामने का हिस्सा क्षतिग्रस्त होने के कारण सीमेंट की ढ़लाई कर ज़ीर्णोद्धार किया गया है. गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है. शिवलिंग के बीच में दरार पड़ी हुयी है, जो कि सिन्दुर से पुता हुआ है. स्थानीय ग्रामवासी शिवलिंग चितावरी देवी के नाम से पूजा करते है इसलिये इस मन्दिर को  चितावरी देवी के मन्दिर के नाम से जाना जाता है।  गर्भगृह का नीचे का हिस्सा लाल बलुआ पत्थरो से बना है.ऊपर का पुरा हिस्सा लाल पकी ईंटो से बना है. यह मन्दिर तारे की आकृति में निर्मित है. ...

हरिहर प्रतिमा

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  हरिहर प्रतिमा - चंद्रादित्य मंदिर बारसूर ओम सोनी             बारसूर में चंद्रादित्य मंदिर बाजार स्थल में विशाल तालाब के किनारे स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। गर्भगृह के प्रवेशद्वार के ललाटबिंब पर भगवान हरिहर की प्रतिमा अंकित है। पुरे छत्तीसगढ़ में एक मात्र यही मंदिर है जिसके प्रवेशद्वार पर हरिहर की प्रतिमा स्थापित है। हिन्दु धर्म में विष्णु (हरि) तथा शिव (हर) का सम्मिलित रूप हरिहर कहलाता है। इनको शंकरनारायण तथा शिवकेशव भी कहते है। विष्णु तथा शिव दोनों का सम्मिलित रूप होने के कारण हरिहर वैष्णव और शैव दोनो के लिये पूज्य है।               शिव और विष्णु ने अपनी एकरूपता दर्शाने के लिये ही हरिहर रूप धरा था, जिसमें एक हिस्सा विष्णु और दुसरा हिस्सा शिव का है। हरिहर की यह प्रतिमा समभंग मुद्रा में है। प्रतिमा में दाये तरफ सिर पर जटामुकुट और कानों में सर्पकुंडल धारण किये हुये है। बायें तरफ सिर पर किरीट मुकुट का अंकन किया गया है। यह प्रतिमा चर्तुभुजी है जिसमें विभिन्न आयुध सुशोभित है। दायें तरफ त्रिशुल और वरद ...

तीरथगढ़ का गुरू जलप्रपात - मंडवा

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तीरथगढ़ का गुरू जलप्रपात  - मंडवा  ओम सोनी बस्तर, एशिया के सबसे चौड़े जलप्रपात चित्रकोट एवं छ0ग0 के बड़े जलप्रपातो में से एक तीरथगढ़ जलप्रपात की असीम सुंदरता के कारण पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसके अलावा बस्तर में और भी अनेकों जलप्रपात है। जो चित्रकोट और तीरथगढ़ के जैसे बड़े आकार के तो नहीं है परन्तु अपने अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य में किसी भी प्रकार से कम नही है। जगदलपुर से गीदम राजमार्ग में मावलीभाठा ग्राम में मंडवा नाम का बेहद ही खुबसुरत जलप्रपात है।  यह जलप्रपात तीरथगढ़ जलप्रपात की हुबहु नकल है। आकार में यह तीरथगढ़ जलप्रपात से बेहद ही छोटा है किन्तु इसकी खुबसुरती तीरथगढ़ जलप्रपात की तरह ही बेहद ही मनमोहनी है। सीढ़ीदार चटटानों से गिरता निर्झर मन को असीम शांति की अनुभूति देता है।  इस निर्झर की मधुर ध्वनि हदय को प्रसन्नचित कर देती है।  दुर से सुनाई देती निर्झर की मधुर ध्वनि , इसके सौंदर्य दर्शन के लिये मन को बेहद ही आतुर कर देती है। बेहद ही शांत वातावरण में जलप्रपात की झलझल करती धाराये, खेतों में चहचहाते पक्षी रोजमर्रा की थकान को पल भर में दुर कर देते हैं।  यह जलप्र...

ढोडरेपाल के प्राचीन मंदिर समुह

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ढोडरेपाल के प्राचीन मंदिर समुह ओम सोनी बस्तर में आज भी बहुत से ऐसे ऐतिहासिक स्थल है जो कि बेहद ही सुगम्य है फिर  भी आम लोगों को इनकी कोई जानकारी नहीं है। जगदलपुर से गीदम राजमार्ग में मावलीभाठा ग्राम भी एक बेहद महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है किन्तु, कुछ लोग ही इस गांव की ऐतिहासिक महत्ता से परिचित है। उचित प्रचार प्रसार नहीं होने के कारण आम लोग बस्तर के ऐतिहासिक धरोहरों से आज भी अनभिज्ञ है।  ढोडरेपाल के प्राचीन मंदिर समुह जगदलपुर-गीदम राष्ट्रीय राजमार्ग में जगदलपुर से 25 किलोमीटर की दुरी पर मावलीभाठा नाम का छोटा सा ग्राम है। इस ग्राम के पास से किरन्दुल कोटवालसा रेलमार्ग है। रेलमार्ग के उस पार , खेतों में प्राचीन मंदिर समुह है। ये मंदिर संख्या में तीन थे किन्तु एक मंदिर नश्ट हो जाने के कारण अब दो ही मंदिर सुरक्षित विद्यमान है। ये मंदिर समुह पूर्वाभिमुख है। दोनो ही मंदिर में शिवलिंग प्रतिष्ठापित है। एक मंदिर में शिवपार्वती की युगल प्रतिमा भी स्थापित है। ये मंदिर लगभग 25 फीट उंचे है। मंदिर गर्भगृह एवं मंडप में विभक्त थे। मंडप पुरी तरह से नष्ट हो गये है। शिखर पर आमलक एवं कलश स्थापित है...

भीमा कीचक मंदिर मल्हार !

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भीमा कीचक मंदिर मल्हार !                                                                                                                                                                                                                  मल्हार छत्तीसगढ़ की प्रमुख प्राचीन नगरी है।  मल्हार बिलासपुर से 40 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। यह मस्तुरी ब्लाक से 15 किलोमीटर दुरी बिलासपुर रायगढ़ मार्ग पर स्थित है। यहां पर प्राचीन काल के कई ऐतिहासिक मंदिर एवं टीले मौजुद है। प्राचीन सम...

बाहर आता बारसूर का इतिहास !

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बाहर आता  बारसूर   का    इतिहास !                                                                                                                                                    ओम सोनी, एम0ए0 इतिहास गोल्डमेडलिस्ट दंतेवाड़ा    बारसूर नगर की धरती आज भी बहुत से प्राचीन मंदिरों एवं उनके अवषेशों को अपने अंदर समेटे हुये है। हजारों वर्शो से ये प्राचीन मंदिर एवं उनके अवषेश जमीन में दबे हुये है। हाल के कुछ वर्शो मे बारसूर में इन मंदिरों के अवषेशों को बाहर लाने के लिये कुछ हलचल हुयी है। बारसूर के गणेषमंदिर परिसर मे पुराने ऐतिहासिक मंदिरों के अवषेशों का मलबा बिखरा पड़़ा था। पुरातत्व विभाग ने मलबे की सफा...

फागुन मेले की शुरूआत

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                             फागुन मेले की शुरूआत !!                                                 त्रिशूल स्थापना एवँ आमा मउड रस्म से हूई फाल्गुन मंडई की शुरूआत!!                                      ओम सोनी,                                                 मां दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा में ऐतिहासिक व विश्व प्रसिद्ध फागुन मंडई की शुरूआत बसंत पंचमी के अवसर पर त्रिशूल  की स्थापना के साथ हो गया है। शुद्ध तांबे से निर्मित इस त्रिशूल को मंदिर के समक्ष स्थापित गरूड़ स्तंभ के समीप मन्दिर के पूजारी सभी परगणो के मांझी मुखियो की उपस्तिथी में परंपरानुसार विधि विधान से स्थापित कि...

ढोलकल पर विराजे गणेश

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ढोलकल पर विराजे गणे श ओम सोनी,                      बैलाडिला की पहाड़ियों की पहचान पुरी दुनिया में इसके गर्भ में पाये जाने वाले लौह अयस्क के कारण है। यहां का लौह अयस्क सर्वाधिक षुद्ध एवं उच्च कोटि का माना जाता है। बैलाडिला की सबसे उंची चोटी नंदीराज की चोटी है। बैल के डिले के आकार की चोटी के कारण इन पहाडियों को बैलाडिला की पहाडी के नाम से प्रसिद्ध है। ये पहाडिया लौह अयस्क से परिपूर्ण तो है साथ इन पहाड़ियों में बस्तर का अनदेखा इतिहास छिपा पड़ा है। इन पहाड़ियो में बहुत सी ऐतिहासिक प्रतिमायें बिखरी पड़ी है जो इंतजार में है दुनिया के सामने आने के लिये।           ढोलकल हां एक ऐसा नाम जो अब बहूत ही प्रसिद्ध हो चुका हैं। जो कभी गुमनाम था किसी कोने में। आज यह ढोलकल पुरी दुनिया के सामने है। बैलाडिला की एक उंची चोटी है ढोलकल। ढोलकल आज पुरी दुनिया में जाना जा रहा है अपने अप्रतिम मनमोहक लुभावने वन एवं प्राकृतिक दृष्य और उस चोटी में विराजित प्रथम वंदनीय गणेषजी की प्रतिमा के कारण।           मैं बहुत पहल...